वो एक ग़रीब बाप की औलाद है. उसका बाप था तो पहले से ही ग़रीब, पर उसके पैदा होने के बाद और भी ग़रीब होता चला गया. वो पैदा होते वक्त ऐसे रो रहा था मानो पैदा होने के पहले भगवान ने उसे इस दुनिया का चलचित्र दिखा दिया हो और वो गर्भ से निकलना ही ना चाह रहा हो क्यूँकी उसमें गर्भ की सुरक्षित दुनिया को छोड़कर निर्दयी वास्तविक दुनिया मे कदम रखने की हिम्मत नही थी. वैसे वो इस वजह से नही रो रहा था. उसके रोने का कारण था उसका शक्तिहीन शरीर. उसके अंगो मे जान ही नही थी. उसकी मरियल माँ, जो उसको गर्भ मे पालते पालते और अपने भोजन का एक हिस्सा उसकी नाभि के रास्ते उसके शरीर में पहुँचाते पहुँचाते और भी मरियल हो गयी थी, उसको जन्म देते ही दुनिया से चल बसी. पर शायद भोजन का वो एक हिस्सा, जिसके लिए गर्भ मे पल रहे बच्चे और गर्भ संभाल रही माँ के बीच मे संघर्ष होता था और अंततः वो बच्चा उस हिस्से को खींच लेता था, उस बच्चे के लिए पूरा नही पड़ा. परिणाम ये हुआ की वो बच्चा एक शक्तिहीन शरीर और अविकसित बुद्धि लेकर इस विकासशील देश, जो २०२० तक विकसित होने वाला है, में पैदा हुआ.
हाँ तो वो रोते हुए पैदा हुआ और फिर रोता ही रहा. उसकी माँ चल बसी तो बाकी सब भी रोने लगे. किसीने उसको चुप कराने की नही सोची. और वो रोता रहा. वो बड़ा भी रोते रोते हुआ. जितनी देर वो सोता था बस उतनी देर शांत रहता था, उठते ही रोने लगता था. और अगर रोता ना तो चिल्लाता रहता, आसपास की चीज़ों को उठाने की कोशिश करता, पर उसके हाथ चीज़ों को थोड़ा बहुत हिलाने के अलावा कुछ ना कर पाते, और वो अपनी इस अशक्तता से खीझकर चिल्लाता, रोता और हाथ पैर पटकता. इसी तरह रोता, चिल्लाता और हाथ पैर पटकता वो बारह साल का हो गया. अब उसके हाथ पैरो में कुछ जान आ गयी है और घिसट-घिसटकर चल लेता है.
बात करते हैं उसके ग़रीब बाप की. भारत की आधी जनता की तरह उसका बाप भी किसान था और भारत की एक तिहाई जनता की तरह वो भी ग़रीबी रेखा के नीचे था. हालाँकि भारत में ग़रीबी रेखा जिस तरह से परिभाषित की गयी है, उससे तो इस रेखा का नाम बदलकर भुखमरी रेखा कर देना चाहिए. खैर भारत के सभी मर्दों की तरह इस ग़रीब किसान की भी शादी हुई और फिर बच्चा भी हुआ और बच्चे के होते ही इसकी औरत चल बसी और बच्चा भी अपंग निकला.
ग़रीब किसान बाप किसी तरह बच्चे को पास पड़ोस वालो के भरोसे छोड़कर खेतों पर गेंहू दाल उगाने जाता, वो गेंहू दाल जो पूरा भारत ख़ाता है और भारत के बाहर के देश भी खाते हैं. वो खेतों से लौटकर आता तो अपने लिए दो मोटी रोटियाँ बनाता और नमक से ख़ाता. बच्चे के लिए वो शुरू के दिनों में बकरी का दूध लता और बाद के दिनों में बच्चे को भी रोटी खिलाता. हाँ बच्चे के लिए कहीं किसी जुगाड़ से कुछ सब्जी भी ले आता. उस ग़रीब किसान बाप को भी दुनिया के सब बापों की तरह अपने बेटे की चिंता सताती और दुनिया के सब बापों की तरह वो भी चाहता की उसका बेटा हृष्ट-पृष्ट बने. पर हृष्ट पृष्ट तो ठहरी दूर की कौड़ी, उसके बेटे के हाथ पैर तो बस हड्डी, उसपर माँस की एक पतली पर्त, और उसपर चिपकी चमड़ी थे. उस ग़रीब किसान बाप ने अपने बेटे को कई हकीम, वैद्य, झाड़ फूँक वालों, और डॉक्टर को दिखाया. सबने मिलकर उस ग़रीब बाप की ग़रीबी को तो और बढ़ा दिया पर उसके बच्चे के हाथ पैरों की उस पतली माँस की पर्त को ज़रा भी ना बढ़ा पाए. समय के साथ उस ग़रीब किसान बाप की ज़मीन बिकती गयी, ग़रीबी बढ़ती गयी और अंततः वो ग़रीब किसान से ग़रीब दिहाड़ी मजदूर बन गया.
भारत एक विकासशील देश है और भारत के शहरों का विकास तेज़ी से हो रहा है और ये शहर गावों की भूमि को तेज़ी से ख़त्म कर रहे हैं. अतः वो ग़रीब किसान बाप भी भारत को विकसित बनाने के सपने का एक हिस्सा बना और अपने अपंग बच्चे को लेकर शहर आ गया. मजदूरों की झुग्गी बस्ती में उसे भी बसेरा मिल गया. मजदूर दिनभर दिहाड़ी करता, बच्चा झोपड़ी मे अकेला रहता, रात को मजदूर घर लौटता तो मल मूत्र से सने बच्चे को साफ करता, दो रोटी बनाता, ख़ाता, बच्चे को खिलाता, और सो जाता. इसी तरह होते होते बच्चा बारह साल का हो गया और पैरों में कुछ जान आने से घिसट-घिसट कर चलने लगा.
आज वो दिहाड़ी मजदूर फिर काम पर आया है. चालीस मंज़िला इमारत बन रही है एक विदेशी बैंक की. मजदूर पैंतीसवी मंज़िल पर है और बाहर दीवार उठा रहे मिस्त्री का साथ दे रहा है. मजदूर का पैर फिसलता है और वो पैंतीसवी मंज़िल से सीधा धरती माता की सख़्त भूमि पर गिरता है और उसकी खोपड़ी चटाक़ की आवाज़ के साथ धरती माता की गोद मे पसर जाती है और उसका शरीर भी जगह जगह से टेढ़ा मेढ़ा होकर धरती माता की गोद में पसार जाता है और उसका खून धरती माता की गोद को लाल कर देता है. उसकी भी हज़ारों दूसरे मजदूरों की तरह अकाल मौत हो जाती है. एक अरब आबादी वाले इस देश में एक मजदूर की जान की कीमत रेत के एक कण के बराबर ही है.
वापस आते हैं उस बच्चे पर, वो बच्चा हमें हर जगह दिखता है. कभी ट्रेन मे, कभी मंदिर मे, कभी चौराहे पर, कभी किसी ढाबे के बाहर, कभी सड़क पर, अपने अधनंगे अपंग शरीर को अपनी बेजान टाँगो से घसीटता हुआ, हमारे सामने अपने बेढंगे, मरियल, काले, गंदे हाथ फैलाए हुए और अपनी निर्जीव, पीली, धँसी हुई आँखों से हमें निहारते हुए. हम उसे तुच्छ नज़रों से देखते हैं की ये कहाँ से आ गया हमारी व्यस्त दिनचर्या के बीच में, अपनी जेब में पड़ा हुआ सबसे कम वजन का सिक्का ढूँढते हैं, उसके बेढंगे, मरियल, काले, गंदे हाथ मे थमाते हैं, और फिर वो मुड़कर हममें से किसी और की तरफ बढ़ लेता है. हम भी आगे बढ़ लेते हैं अपने दिल को एक हिन्दी फिल्म के गीत के बोल से तसल्ली देते हुए - "आल इज़ वेल!"
क्या हुआ अगर भारत में हज़ारों महिलाएँ असुरक्षित प्रसव के कारण काल के गाल में समा जाती हैं तो! बस दिल पर हाथ रखो और बोलो - "आल इज़ वेल!" क्या हुआ अगर भारत के में लाखों किसान हर साल भूमिहीन होकर दिहाड़ी मजदूरों में बदलते जा रहे हैं तो! क्या हुआ अगर इनमे से कई अकाल मृत्यु या फिर किसी बीमारी का शिकार बनते हैं तो! बस दिल पर हाथ रखो और बोलो - "आल इज़ वेल!" क्या हुआ अगर भारत की सड़को पर हज़ारों भूखे, नंगे, अपंग, भिखारी बच्चे भटकते हैं तो! बस दिल पर हाथ रखो और बोलो - "आल इज़ वेल! आल इज़ वेल!!"
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यह पोस्ट कृति देव फ़ॉन्ट में होने के कारण केवल उन सिस्टम्स पर ही दिखेगा जिनमे यह फ़ॉन्ट इनस्टॉल्ड हैं. मैं जल्दी ही इसको मंगल या अन्य किसी फ़ॉन्ट मे बदलकर पोस्ट करता हूँ जिससे हर सिस्टम पर पढ़ा जा सके.
ReplyDeletehey dont do this just go to customize
ReplyDeletethen in settings go to basic setting tab
and then there enable translator and enable to hindi
and above it choose advanced editor.
then write ur post by clicking a new tab in your tool baar अ and start writing
Thanks for your suggestion Ankur. Well I checked the settings and found out that all these settings were already enabled. I will retype the blog and post it soon.
ReplyDeletechng the font to mangal...
ReplyDeleteFont Changed.
ReplyDeletehmm, urbanization :|
ReplyDeleteAll is certainly not well ! :(
Somewhere, this has to stop.. nways nicely written..
me dasvi kaksha me aise hindi ke lessons padhi hu.. bohot hi acche hua karte the... (
Thanks! Waise dasvi kaksha ke lesson yaad hain abhi tak ye achchi baat hai. :)
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